प्रगति की अंधी दौड़ प्रगति की अंधी दौड़
एक तरफ है स्वाभिमान है दूसरी तरफ मजबूरी एक तरफ है स्वाभिमान है दूसरी तरफ मजबूरी
विश्वास के चेहरे पे जो कालिख मली गई ऋतू आई थी बसंत की आकर चली गई। विश्वास के चेहरे पे जो कालिख मली गई ऋतू आई थी बसंत की आकर चली गई।
रही अडिग सत्य पथ पर तो निश्चय ही स्वयंसिद्धा कहलाओगी। रही अडिग सत्य पथ पर तो निश्चय ही स्वयंसिद्धा कहलाओगी।
समय मुट्ठी की रेत सा फिसलता जा रहा है , हर लम्हा यूँ ही गुजरता जा रहा है, समय मुट्ठी की रेत सा फिसलता जा रहा है , हर लम्हा यूँ ही गुजरता जा रहा है,
कोई अनकही सिहरन हो हो सकता है तुम एक किरण हो कोई अनकही सिहरन हो हो सकता है तुम एक किरण हो